Herbivorous Animals Name in Hindi and English 1)- Cow काऊ गाय, 2)-Ship सिप भेड़, 3)-Goat गोट बकरी, 4)-Deer डिअर हिरण, 5)-Horse हॉर्स घोड़ा, 6)-Monkey मंकी बन्दर, 7)- Ox ओक्स बैल, 8)- Rabbit रैबिट खरगोश
नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप लोग, आप लोग से उम्मीद करता हूँ आप लोग बिल्कुल ठीक होंगे आपका हमारे इस लेख में हार्दिक स्वागत है, आज के इस लेख के मदद से हम सीखेगें कि शाकाहारी जंतु Herbivorous Animal किसे कहते हैं और शाकाहारी जन्तुओं Herbivorous Animals के नाम हिंदी और अंग्रेजी में क्या है—
शाकाहारी जंतु Herbivorous Animal
ऐसे जीव जन्तु जो अपने भोजन (आहार) के लिए केवल हरे घास और पेड़-पौधे पर निर्भर होते हैं, उन्हें शाकाहारी जन्तु (Herbivorous Animal) कहते हैं। ऐसे जीवों को प्राथमिक उपभोक्ता भी कहा जाता है।
Herbivorous Animals Name in Hindi and English शाकाहारी जन्तुओं के नाम हिंदी और अंग्रेजी में
S.N. | Herbivorous Animals | Pronunction | Herbivorous Animals |
1 | Cow | काऊ | गाय |
2 | Buffalo | बफैलो | भैंस |
3 | Ship | सिप | भेड़ |
4 | Goat | गोट | बकरी |
5 | Deer | डिअर | हिरण |
6 | Horse | हॉर्स | घोड़ा |
7 | Monkey | मंकी | बन्दर |
8 | Ox | ओक्स | बैल |
9 | Hare/Rabbit | हेर/ रैबिट | खरगोश |
10 | Donkey | डंकी | गधा |
11 | Camel | कैमल | उँट |
12 | Ape | एप | लंगूर |
13 | Yak | याक | जंगली भैसा |
14 | Pig | पिग | सुअर |
15 | Giraffe | जिराफ़ | जिराफ |
16 | Zebra | ज़ेबरा | जेब्रा |
17 | Kangaroo | कंगारू | कंगारू |

Top Herbivorous Animals Name प्रमुख शाकाहारी जन्तुओं के नाम
1- Cow ( गाय ):-
गाय एक महत्वपूर्ण घरेलू पशु है, जिसे दुनिया भर में शाकाहारी जंतु ( Herbivorous Animal ) के रूप में जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम Bos taurus है। गाय न केवल कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा है, बल्कि विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों में भी इसका विशेष स्थान है।
शारीरिक विशेषताएँ:-
गाय का शरीर मजबूत और मांसल होता है। इसकी ऊँचाई 1.2 से 1.5 मीटर तक होती है, और इसका वजन 400 से 800 किलोग्राम तक हो सकता है। गाय के शरीर पर छोटे बाल होते हैं, और इनका रंग नस्ल के अनुसार भिन्न होता है, जैसे कि सफेद, काला, भूरा, या चितकबरा। गाय के चार पैर मजबूत और खुरदार होते हैं, जो इसे खेतों में आसानी से चलने में मदद करते हैं। इसकी पूंछ लंबी होती है, जिसके अंत में बालों का गुच्छा होता है, जो मक्खियों और कीड़ों को भगाने में सहायक होता है।
आहार:-
गाय एक शुद्ध शाकाहारी जंतु ( Herbivorous Animal ) है, जो मुख्य रूप से घास, पत्तियां, और अन्य वनस्पतियों का सेवन करती है। इसके अलावा, यह चारा, भूसा, और कुछ अनाज भी खाती है। गाय का पेट चार भागों में बंटा होता है—रुमेन, रेटिकुलम, ओमासम, और एबोमासम। यह संरचना उसे जटिल वनस्पति को पचाने में मदद करती है। पहले, गाय भोजन को चबाकर रुमेन में भेजती है, जहाँ यह आंशिक रूप से पच जाता है। फिर, यह आंशिक रूप से पचे हुए भोजन को वापस मुँह में लाकर पुनः चबाती है, जिसे जुगाली कहते हैं।
उपयोगिता:-
गाय का मानव जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। सबसे महत्वपूर्ण इसका दूध है, जो पोषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। गाय का दूध कैल्शियम, प्रोटीन, विटामिन और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इसके अलावा, गाय के दूध से दही, घी, मक्खन, और पनीर जैसे उत्पाद भी बनाए जाते हैं।
कृषि कार्यों में भी गाय का योगदान महत्वपूर्ण है। पुराने समय में, गायों का उपयोग खेतों की जुताई के लिए किया जाता था। आज भी, कुछ ग्रामीण इलाकों में गायें बैल के साथ मिलकर हल खींचने का काम करती हैं। इसके अलावा, गाय के गोबर का उपयोग खाद के रूप में किया जाता है, जो मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में सहायक होता है। गाय के गोबर से बायोगैस भी बनाई जाती है, जो एक स्वच्छ ऊर्जा स्रोत है। गाय के मूत्र का उपयोग भी विभिन्न पारंपरिक औषधियों में किया जाता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:-
भारत और कई अन्य देशों में गाय को धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक सम्मान दिया जाता है। हिंदू धर्म में, गाय को माँ का दर्जा दिया गया है और उसे गौमाता कहा जाता है। गाय को पूजनीय माना जाता है और इसे मारने या कष्ट देने को पाप समझा जाता है। धार्मिक अनुष्ठानों में भी गाय का विशेष स्थान होता है, और इसे शुभ और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
संरक्षण और चुनौतियाँ:-
हालांकि गाय का धार्मिक और आर्थिक महत्व बहुत अधिक है, लेकिन आजकल इनकी सुरक्षा और संरक्षण पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। गायों की आबादी में गिरावट, उनके चारागाहों की कमी, और अवैध कटाई जैसी समस्याएं गंभीर चुनौतियाँ पेश करती हैं। इसके लिए सरकार और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि गायों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
अंत में, गाय एक बहुआयामी शाकाहारी जंतु ( Herbivorous Animal ) है, जिसका मानव जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। इसके धार्मिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक योगदान इसे अद्वितीय बनाते हैं, और इसे संरक्षित और सम्मानित करना हमारी जिम्मेदारी है।
2)-Ship (भेड़ ):-
भेड़ (Sheep) एक शाकाहारी जंतु ( Herbivorous Animal ) है जो मुख्य रूप से घास, पत्ते, और विभिन्न प्रकार के पौधों का सेवन करता है। यह प्राचीन काल से मनुष्यों द्वारा पाले जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण पशुओं में से एक है। भेड़ें मुख्य रूप से ऊन, दूध, और मांस के लिए पाली जाती हैं। इनका वैज्ञानिक नाम Ovis aries है, और यह बोविडा (Bovidae) परिवार से संबंधित है, जिसमें बकरी, गाय, और भैंस जैसे अन्य जंतु भी शामिल हैं।
भेड़ की उत्पत्ति और विकास:-
भेड़ों की उत्पत्ति का इतिहास बहुत पुराना है। ऐसा माना जाता है कि भेड़ों का पालतूकरण लगभग 10,000 साल पहले दक्षिण-पश्चिमी एशिया में हुआ था। इनका विकास जंगली भेड़ों से हुआ है, जिन्हें आज भी कुछ क्षेत्रों में पाया जा सकता है। समय के साथ, भेड़ों की विभिन्न नस्लों का विकास हुआ, जो आज भी दुनिया भर में पाए जाते हैं।
शारीरिक विशेषताएँ:-
भेड़ों का शरीर मध्यम आकार का होता है, और इनका वजन 45 से 100 किलोग्राम तक हो सकता है, जो नस्ल और लिंग के अनुसार बदलता है। भेड़ों की मुख्य पहचान उनकी ऊन होती है, जो उनके शरीर को ठंड से बचाती है। ऊन का रंग सफेद, काला, भूरे या धब्बेदार हो सकता है। भेड़ों के सिर पर दो सिंग होते हैं, जो गोल या घुमावदार हो सकते हैं, और उनकी आँखें बड़ी और गोल होती हैं।
भेड़ों के दांत उनके शाकाहारी आहार के अनुकूल होते हैं। उनके दांत विशेष रूप से घास और पौधों को काटने और चबाने के लिए अनुकूलित होते हैं। भेड़ों का पेट चार भागों में बंटा होता है, जो उनके भोजन को पचाने में सहायक होता है। यह चार-कक्षीय पेट जुगाली करने वाले पशुओं में आम होता है और उन्हें भोजन को बार-बार चबाने और पचाने में मदद करता है।
आहार और जीवनशैली:-
भेड़ें पूर्ण रूप से शाकाहारी होती हैं। उनका मुख्य आहार घास, पत्ते, और अन्य प्रकार के हरे पौधे होते हैं। इसके अलावा, भेड़ें अनाज, बीज और फलों का भी सेवन कर सकती हैं। वे चरने वाले पशु होते हैं, जो दिन के समय घास के मैदानों में चरते हैं। भेड़ों के पास भोजन को पहचानने और उसका स्वाद लेने की एक अद्वितीय क्षमता होती है। वे भोजन की गुणवत्ता और उसकी ताजगी का आंकलन कर सकती हैं।
सामाजिक व्यवहार:-
भेड़ें अत्यधिक सामाजिक जंतु होती हैं और झुंड में रहना पसंद करती हैं। झुंड में रहकर वे खुद को शिकारियों से सुरक्षित महसूस करती हैं। भेड़ों का समूह एक नेतृत्वकर्ता के आसपास संगठित होता है, जिसे समूह का सबसे अनुभवी या ताकतवर भेड़ चुना जाता है। जब भी झुंड चलता है, तो नेतृत्वकर्ता आगे बढ़ता है, और बाकी सभी भेड़ें उसका अनुसरण करती हैं।
प्रजनन और जीवनचक्र:-
भेड़ों का प्रजनन आमतौर पर साल में एक बार होता है। मादा भेड़ (जिसे ईव कहा जाता है) 5 महीने के गर्भधारण के बाद एक या दो बच्चों को जन्म देती है। नवजात भेड़ के बच्चे (जिसे लैम्ब कहा जाता है) जन्म के कुछ ही घंटों के भीतर खड़े होकर दूध पीने लगते हैं। भेड़ों का जीवनकाल आमतौर पर 10 से 12 साल का होता है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में वे 15 साल या उससे अधिक भी जीवित रह सकती हैं।
आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व:-
भेड़ें मानव सभ्यता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रही हैं। ऊन, जो भेड़ों से प्राप्त होता है, कपड़ा उद्योग में बेहद महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, भेड़ों का दूध और मांस भी कई समुदायों के लिए पोषण का महत्वपूर्ण स्रोत हैं। विभिन्न संस्कृतियों में भेड़ों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी है, और वे कई धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग की जाती हैं।
निष्कर्ष:-
भेड़ें न केवल शाकाहारी जीव हैं, बल्कि वे मानव सभ्यता के विकास में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उनका शांत स्वभाव, पोषण स्रोत के रूप में उपयोग, और ऊन का उत्पादन उन्हें पशुपालन के लिए एक आदर्श जंतु बनाता है। इनकी देखभाल और संरक्षण हमारे कृषि और आर्थिक तंत्र के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
3)- Goat ( बकरी ):-
बकरी एक घरेलू शाकाहारी जंतु ( Herbivorous Animal ) है, जो प्राचीन काल से ही मनुष्य के साथ जुड़ी हुई है। इसका वैज्ञानिक नाम Capra aegagrus hircus है, और यह बुविडाए (Bovidae) परिवार का सदस्य है। बकरी दुनिया भर में पाई जाती है और इसे मुख्य रूप से दूध, मांस, और ऊन के लिए पाला जाता है।
शारीरिक विशेषताएँ:-
बकरी का शरीर सामान्यतः छोटे से मध्यम आकार का होता है। इसकी ऊंचाई लगभग 60 से 90 सेमी तक होती है, और वजन 20 से 100 किलोग्राम के बीच हो सकता है, जो उसकी नस्ल और पालन-पोषण पर निर्भर करता है। बकरियों के सींग होते हैं, जो पीछे की ओर मुड़े हुए होते हैं, और इनकी दाढ़ी भी होती है, विशेषकर नर बकरियों में। इनके बाल छोटे, मोटे और सीधे होते हैं, जो गर्मी और ठंड दोनों से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
भोजन और आहार:-
बकरी एक शाकाहारी जंतु ( Herbivorous Animal ) है, जो मुख्य रूप से हरी घास, पत्तियाँ, टहनियाँ, और विभिन्न प्रकार के पौधों का सेवन करती है। बकरियाँ अपने भोजन के लिए बहुत चयनशील होती हैं और वे ऐसे पौधों को भी खा सकती हैं जिन्हें अन्य पशु नहीं खा पाते। बकरियाँ झाड़ियों और पेड़ों की पत्तियों को खाना पसंद करती हैं, जिससे यह साबित होता है कि वे ग्रेज़र (Grazer) और ब्राउज़र (Browser) दोनों होती हैं।
पालन-पोषण और उपयोगिता:-
बकरी पालन ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बहुत लोकप्रिय है। बकरी पालन में कम खर्च आता है और इसके मांस, दूध और ऊन की अच्छी मांग होती है। बकरी का दूध अत्यधिक पौष्टिक होता है, जिसमें विटामिन, खनिज और प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होते हैं। इसका उपयोग दही, पनीर, और अन्य डेयरी उत्पाद बनाने में किया जाता है। इसके अलावा, बकरी का मांस भी पोषण से भरपूर होता है और इसे कई देशों में विशेष व्यंजनों के लिए प्रयोग किया जाता है।
सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व:-
बकरी का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व भी है। कई संस्कृतियों में बकरी को बलिदान के रूप में प्रयोग किया जाता है, और इसे समृद्धि और संपन्नता का प्रतीक माना जाता है। भारत में बकरी पालन का एक महत्वपूर्ण स्थान है, विशेषकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में, जहां यह गरीब और मध्यम वर्ग के किसानों के लिए आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
प्रजनन और जीवन चक्र:-
बकरियों का प्रजनन चक्र सामान्यतः वर्ष में दो बार होता है। एक बार में एक या दो बच्चे जन्म लेते हैं, लेकिन कुछ नस्लों में तीन या चार बच्चे भी हो सकते हैं। बकरी का गर्भकाल लगभग पांच महीने का होता है, और बच्चे जन्म के तुरंत बाद चलने लगते हैं। बकरियाँ अच्छी माताएँ होती हैं और अपने बच्चों का ध्यानपूर्वक पालन-पोषण करती हैं।
पर्यावरण और बकरी पालन:-
बकरी पालन पर्यावरण के लिए भी महत्वपूर्ण है। बकरियाँ कठोर परिस्थितियों में जीवित रह सकती हैं और उन क्षेत्रों में भी चर सकती हैं, जहां अन्य पशु नहीं जा सकते। वे पौधों के प्रबंधन में सहायक होती हैं और पर्यावरण को संतुलित रखने में मदद करती हैं। हालाँकि, अत्यधिक चराई से जमीन का क्षरण हो सकता है, इसलिए बकरी पालन को संतुलित और नियंत्रित तरीके से करना आवश्यक है।
कुल मिलाकर, बकरी एक महत्वपूर्ण घरेलू पशु है, जो न केवल आर्थिक रूप से लाभकारी है, बल्कि पर्यावरण और समाज के लिए भी महत्वपूर्ण है। इसकी सरलता, सहनशीलता और बहुउपयोगिता इसे एक अत्यंत मूल्यवान पशु बनाती है।
4- Deer ( हिरण ):-
हिरण (Deer) एक सुंदर, शाकाहारी जंतु ( Herbivorous Animal ) है जो अपनी कोमलता, तेज़ी और अनुग्रह के लिए प्रसिद्ध है। यह जंतु पूरे विश्व में पाया जाता है, विशेषकर एशिया, यूरोप, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका, और अफ्रीका के विभिन्न हिस्सों में। हिरण विभिन्न प्रजातियों में विभाजित होते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं – चीतल, सांभर, काकड़, बारहसिंगा, और मूस (Moose)।
शारीरिक विशेषताएँ:-
हिरण के शरीर की संरचना काफी अनुकूलित होती है, जिससे यह तेज़ी से दौड़ सकता है और झाड़ियों में आसानी से छिप सकता है। सामान्यतः हिरण का शरीर पतला और मांसल होता है, जिसकी लंबाई 1.2 से 2.4 मीटर और वजन 15 से 250 किलोग्राम तक होता है, जो उसकी प्रजाति पर निर्भर करता है। हिरण की टांगें लंबी और पतली होती हैं, जो इसे कठिन इलाकों में भी आसानी से दौड़ने की क्षमता प्रदान करती हैं। हिरण की आंखें बड़ी और कान चौड़े होते हैं, जो इसे उत्कृष्ट दृष्टि और सुनने की क्षमता प्रदान करते हैं।
हिरण के सींग इसकी पहचान का एक प्रमुख हिस्सा होते हैं। नर हिरण के सिर पर सींग होते हैं जो प्रतिवर्ष गिरते हैं और नए उगते हैं। यह सींग न केवल उसके प्रजनन काल के दौरान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, बल्कि शिकारियों से बचाव में भी सहायक होते हैं। मादा हिरणों में आमतौर पर सींग नहीं होते, हालांकि कुछ प्रजातियों में मादा भी सींग धारण करती हैं।
आहार:-
हिरण पूरी तरह से शाकाहारी होते हैं, और उनका आहार मुख्य रूप से पत्तियों, घास, फलों, और छोटी टहनियों पर आधारित होता है। इसके अलावा, वे विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों, जैसे कि काई, छाल और पौधों की जड़ों को भी खाते हैं। हिरण के भोजन की आदतें काफी लचीली होती हैं, और वे अपने पर्यावरण के अनुसार अपनी आहार शैली को बदल सकते हैं। जब भोजन की कमी होती है, तो हिरण पत्तियों और छाल जैसे कठोर पदार्थ भी खाने लगते हैं।
व्यवहार और सामाजिक संरचना:-
हिरण एक सामाजिक जंतु होते हैं और आमतौर पर छोटे समूहों में रहते हैं, जिन्हें झुंड कहा जाता है। एक झुंड में एक या अधिक नर, कई मादा और उनके बच्चे शामिल होते हैं। हिरणों का जीवन झुंड के भीतर होता है, जो उन्हें शिकारियों से सुरक्षा प्रदान करता है।
हिरणों के व्यवहार में सतर्कता एक महत्वपूर्ण विशेषता होती है। वे अपने आस-पास के वातावरण के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं और किसी भी खतरे का संकेत मिलने पर तुरंत भाग जाते हैं। यह उनके तेज़ी से दौड़ने की क्षमता और उत्कृष्ट छलांग लगाने की योग्यता के कारण संभव होता है। हिरणों की कुछ प्रजातियाँ 90 किमी प्रति घंटा तक की गति से दौड़ सकती हैं और 10 फीट तक की ऊँचाई पर छलांग लगा सकती हैं।
प्रजनन:-
हिरणों का प्रजनन काल सामान्यतः वर्ष के विशेष समय में होता है, जिसे ‘रट’ कहते हैं। इस समय नर हिरण मादा के ध्यान आकर्षित करने के लिए अपनी शक्ति और सींगों का प्रदर्शन करते हैं। नर हिरणों के बीच प्रजनन अधिकारों के लिए संघर्ष भी होता है। मादा हिरण एक बार में एक या दो बच्चों को जन्म देती है।
हिरण के बच्चे, जिन्हें फॉन कहा जाता है, जन्म के तुरंत बाद ही खड़े हो सकते हैं और थोड़े ही समय में चलना शुरू कर देते हैं। जन्म के बाद के पहले कुछ सप्ताह में, फॉन अपनी मां के साथ रहते हैं और उसकी सुरक्षा में होते हैं।
महत्व:-
हिरण का वन्यजीवन और मानव समाज दोनों में महत्वपूर्ण स्थान है। यह न केवल पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, बल्कि विभिन्न संस्कृतियों में भी इसका महत्वपूर्ण स्थान है। कई धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में हिरण का प्रतीकात्मक महत्व होता है।
अंत में, हिरण एक ऐसा जंतु है जो अपने सौंदर्य, अनुग्रह, और पर्यावरणीय महत्व के कारण दुनिया भर में प्रशंसा और सम्मान का पात्र है।
5-Rabbit ( खरगोश ):-
खरगोश, जिसे अंग्रेज़ी में “Rabbit” कहा जाता है, एक शाकाहारी स्तनपायी जंतु ( Herbivorous Animal ) है। यह जीव अपनी कोमलता, फुर्ती, और मासूमियत के लिए जाना जाता है। खरगोश का वैज्ञानिक नाम Oryctolagus cuniculus है, और यह लेपोरिडी (Leporidae) परिवार का सदस्य है। खरगोश दुनियाभर में विभिन्न क्षेत्रों में पाया जाता है और यह एक लोकप्रिय पालतू जानवर भी है।
शारीरिक विशेषताएँ:-
खरगोश का शरीर छोटा, गोलाकार और नाजुक होता है। इसके लंबे कान, बड़े-बड़े आंखें, और छोटी पूंछ इसकी पहचान होती हैं। खरगोश की टांगें बहुत मजबूत होती हैं, जो इसे तेजी से दौड़ने में सक्षम बनाती हैं। इसकी लंबाई आमतौर पर 20 से 50 सेमी तक होती है और वजन 1 से 2.5 किलोग्राम तक हो सकता है। खरगोश का फर मुलायम होता है और इसके रंगों में सफेद, भूरा, काला, और ग्रे शामिल हैं।
आहार:-
खरगोश पूरी तरह से शाकाहारी जंतु है। इसका आहार मुख्यतः हरी घास, पत्तियाँ, सब्जियाँ, और फल होते हैं। जंगली खरगोश घास, घास की जड़ें, और अन्य वनस्पतियों का सेवन करते हैं, जबकि पालतू खरगोशों को लोग पालक, गाजर, ब्रोकली, और तरह-तरह की पत्तेदार सब्जियाँ खिलाते हैं। खरगोश का पाचन तंत्र बहुत ही संवेदनशील होता है, इसलिए इसे हमेशा ताज़ा और साफ़ आहार दिया जाना चाहिए। इन्हें अक्सर चबाने के लिए ताजे घास या अल्फाल्फा दी जाती है, क्योंकि इसके दांत लगातार बढ़ते रहते हैं और उन्हें घिसने की आवश्यकता होती है।
प्रजनन:-
खरगोश की प्रजनन क्षमता बहुत उच्च होती है। एक मादा खरगोश, जिसे डो (Doe) कहा जाता है, साल में कई बार गर्भधारण कर सकती है। गर्भावस्था की अवधि लगभग 28 से 31 दिनों की होती है, जिसके बाद मादा खरगोश 4 से 12 बच्चों को जन्म देती है। नवजात खरगोश, जिन्हें किट्स (Kits) कहा जाता है, जन्म के समय अंधे और बिना बालों के होते हैं। मादा खरगोश अपने बच्चों का विशेष ध्यान रखती है और उन्हें सुरक्षित स्थान पर पालती है।
व्यवहार और आवास:-
खरगोश सामाजिक जंतु होते हैं और समूह में रहना पसंद करते हैं। वे भूमिगत बिल (Burrows) में रहते हैं, जिन्हें वॉरन (Warren) कहा जाता है। ये बिल जटिल सुरंगों और चैंबरों से बने होते हैं, जो खरगोशों को शिकारियों से बचाते हैं और मौसम की कठिनाइयों से सुरक्षित रखते हैं। खरगोश दिन में सक्रिय रहते हैं, लेकिन वे रात के समय भी भोजन की तलाश में बाहर आ सकते हैं।
खरगोश बेहद सतर्क होते हैं और छोटे से छोटे आवाज़ या हलचल पर प्रतिक्रिया करते हैं। अगर उन्हें कोई खतरा महसूस होता है, तो वे अपने लंबे कानों को खड़ा करके शिकारियों की दिशा का पता लगाने की कोशिश करते हैं। खतरों से बचने के लिए वे अपनी तेज़ी से दौड़ने की क्षमता का उपयोग करते हैं।
पर्यावरणीय महत्व:-
खरगोश पारिस्थितिकी तंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये अपने आहार की आदतों के माध्यम से पौधों के फैलाव में मदद करते हैं। साथ ही, खरगोश कई शिकारियों जैसे बाज, उल्लू, लोमड़ी, और सांप के लिए एक महत्वपूर्ण आहार स्रोत हैं।
निष्कर्ष:-
खरगोश एक अद्वितीय और प्यारा जीव है जो हमारे प्राकृतिक पर्यावरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसकी प्रजनन क्षमता, आहार की आदतें, और सतर्कता इसे न केवल जीवित रहने में मदद करती हैं, बल्कि इसे अन्य प्रजातियों के साथ सह-अस्तित्व में भी सक्षम बनाती हैं। चाहे वह जंगली खरगोश हो या पालतू, यह जंतु अपनी अद्वितीयता और कोमलता के कारण हमेशा आकर्षण का केंद्र बना रहता है।
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